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रहीम के दोहे और उसके अर्थात कक्षा 9वी के लिए (Rahim ke dohe class 9)
1. रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय।।
शब्दार्थ: 1. चटकाय – चटकाकर या चटक कर टूट जाना, 2. गांठ – बांधना
अर्थ: रहीम जी कहते हैं कि प्रेम का रिस्ता एक धागे के समान नाज़ुक होता है कभी भी इसे झटके से नहीं तोड़ना चाहिए क्योंकि जब वह एक बार टूट जाता है। तो उसे दोबारा जोड़ने पर भी उसमें गांठ पड़ जाती है। जिससे कि वह रिश्ता फिर पहले जैसा नहीं रहता।
2. रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय।।
शब्दार्थ: 1. निज – मेरा, 2. बिथा – दुख, दर्द 3. गोय – छिपाकर रखना, 4. अठिलैहैं – मज़ाक, 5. बाँटि – बांटना
अर्थ: रहीम कहते हैं कि अपने मन के दुःख या दर्द को अपने मन के भीतर छिपा कर ही रखना चाहिए। किसी दूसरे को नहीं बताना चाहिए। क्योंकि दूसरों को सुनाने से लोग सिर्फ उसका मजाक उड़ाते हैं, उसे बाँट कर कम करने वाला कोई नहीं होता।
3. एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय।
शब्दार्थ: 1. साधे – साथ, 2. मूलहिं – जड़, 3. सींचिबो – सिंचाई करना, पौधों में पानी देना, 4. फूलै फलै – फूल और फल
अर्थ: रहीम कहते हैं कि एक बार में कोई एक ही कार्य करना चाहिए। बहुत से काम एक साथ शुरू करने से कोई भी काम ढंग से नहीं हो पता, वे सब अधूरे से रह जाते हैं। इसलिए किसी भी व्यक्ति को एक बार में एक ही कार्य को करना चाहिए। जैसे एक ही पेड़ की जड़ को अच्छी तरह सींचा जाए तो उसका तना, शाख़ाएँ, पत्ते, फल-फूल सब हरे-भरे रहते हैं।
4. चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध-नरेस।
जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस।।
शब्दार्थ: 1. रमि – श्री राम, 2. चित्रकूट –वनवास के समय श्री रामचंद्र जी सीता और लक्ष्मण के साथ कुछ समय तक चित्रकूट में रहे थे, 3. बिपदा – विपत्ति, 4. आवत – आना
अर्थ: जब राम जी को 14 वर्षों का वनवास मिला था तो वह अयोध्या छोर कर चित्रकूट में रहने गए थे जो कि एक घनघोर वन में बहुत ही बीहड़ इलाका था। और उन्हें बहुत सारे बाधाओं का सामना करना पड़ा। जिस पर भी विपत्ति आती है वह शांति पाने के लिए इसी प्रदेश में खिंचा चला आता है।
5. दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं।
ज्यों रहीम नट कुंडली, सिमिटि कूदि चढ़ि जाहिं।।
शब्दार्थ: 1. अरथ (अर्थ) – मायने, आशय, 2. सिमिटि – सिकुडना, 3. नट – सर्कस कलाकार 4. ज्यों – जैसे
अर्थ: इन पंक्तियों में रहीम जी कह रहे है कि उनके दोहों में शब्द भले कम है परन्तु उनका अर्थ बड़ा गूढ़ व दीर्घ है। जैसे एक नट करतब दिखाता है, वह करतब दिखाने के दौरान अपने बड़े शरीर को सिमटा कर कुंडली मार कर बैठता है तो छोटा लगने लगता है।जिससे कि उसके सही आकार का अंदाजा नहीं लग पाता। वैसे ही किसी को उसके आकार से नहीं आंकना चाहिए क्योंकि आकार से किसी की भी प्रतिभा का सही अंदाजा नहीं लगता है।
6. धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पिअत अघाय।
उदधि बड़ाई कौन है, जगत पिआसो जाय।।
शब्दार्थ: 1. धनि – धन्य, 2. पंक – कीचड़, 3. अघाय – तृप्त, 4. उदधि – सागर-समुद्र, 5. पिआसो – प्यासा
अर्थ: रहीम कहते हैं कि कीचड़ का जल सागर के जल से महान है क्योंकि कीचड़ के जल से कितने ही लघु जीव प्यास बुझा लेते हैं। लेकिन इसके विपरीत वह विशाल सागर का जल जिसकी मात्रा बहुत अधिक है। फिर भी वह जल खराब (व्यर्थ) है क्योंकि उस जल से किसी की कोई सहायता नहीं होती और ना किसी जीव की प्यास बुझ पाती है। मतलब यह कि महान या बड़ा वही है जो किसी के काम आए।
7. नाद रीझि तन देत मृग, नर धन हेत समेत।
ते रहीम पशु से अधिक, रीझेहु कछू न देत।।
शब्दार्थ: 1. नाद – ध्वनि, 2. रीझि – मोहित होकर, 3. मृग – हिरण
अर्थ: रहीम जी यह कह रहे हैं कि ध्वनि को सुनकर एक हिरण अपने शरीर को न्योछावर कर देता है। मनुष्य प्रेम के लिए अपने आपको न्योछावर कर देता है। लेकिन वो मनुष्य तो जानवर से भी बत्तर है। जो किसी से खुशी पाने पर कुछ भी न्योछावर नहीं करते।
8. बिगरी बात बन नहीं, लाख करौ किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।।
शब्दार्थ: 1. बिगरी – बिगड़ी हुई, 2. फाटे दूध – फटा हुआ दूध, 3. मथे – बिलोना मथना
अर्थ: अगर एक बार बात बिगड़ जाए तो लाख कोशिश करने के बाद भी वह सुधरती नहीं। इसलिए हमे हर बात को सोच समझकर करना चाहिए। अगर बात बिगड़ जाए तो वह उस फटे दूध के समान है जिसको चाहे जितना भी मथे या बिलोएँ उसमे से कभी भी मक्खन नहीं निकाल सकता।
9. रहिमन देखि बडेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि।।
शब्दार्थ: 1. बडेन – बड़ा, 2. तरवारि – तलवार
अर्थ: रहीम कहते हैं कि कभी भी किसी भी व्यक्ति या वस्तु को कम या छोटा नहीं समझना चाहिए। कोई भी व्यक्ति या वस्तु कभी भी काम आ सकती है ठीक उसी प्रकार जैसे सुई का काम तलवार नहीं कर सकती भले ही सुई बहुत ही छोटी होती है।
10. रहिमन निज संपति बिना, कोउ न बिपति सहाय।
बिनु पानी ज्यों जलज को, नहिं रवि सके बचाय।।
शब्दार्थ: 1. निज – अपना, 2. संपति – धन, 3. सहाय – सहायता, 4. जलज – कमल, 5. रवि – सूरज
अर्थ: रहीम कहते हैं कि संकट की स्थिति में मनुष्य की निजी धन-दौलत ही उसकी सहायता करती है।जिस प्रकार पानी का अभाव होने पर सूर्य कमल की कितनी ही रक्षा करने की कोशिश करे, फिर भी उसे बचाया नहीं जा सकता, उसी प्रकार मनुष्य को बाहरी सहायता कितनी ही क्यों न मिले, किंतु उसकी वास्तविक रक्षक तो निजी संपत्ति ही होती है।
11. रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून।।
शब्दार्थ: 1. मानुष – मनुष्य , इंसान, 2. चून – आटा,
अर्थ: इस दोहे में पानी को तीन अर्थों का प्रयोग किया गया है। पहला अर्थ मनुष्य के लिए है इसका मतलब है विनम्रता। दूसरा अर्थ चमक के लिए है जिसके बिना मोती का कोई मूल्य नहीं। तीसरा अर्थ चूने से जोड़कर दर्शाया गया है। रहीम जी का कहना है की जिस:
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